चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
आज फिर से
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
है कहाँ वह आग जो मुझको जलाए,
है कहाँ वह ज्वाल मेरे पास आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूँद भी तो तुम गिराओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूँगा,
कल प्रलय की आँधियों से मैं लडूँगा,
किंतु मुझको आज आँचल से बचाओ,
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
आत्मदीप
मुझे न अपने से कुछ प्यार
मिट्टी का हूँ छोटा दीपक
ज्योति चाहती दुनिया जबतक
मेरी, जल-जल कर मैं उसको देने को तैयार
पर यदि मेरी लौ के द्वार
दुनिया की आँखों को निद्रित
चकाचौध करते हों छिद्रित
मुझे बुझा दे बुझ जाने से मुझे नहीं इंकार
केवल इतना ले वह जान
मिट्टी के दीपों के अंतर
मुझमें दिया प्रकृति ने है कर
मैं सजीव दीपक हूँ मुझ में भरा हुआ है मान
पहले कर ले खूब विचार
तब वह मुझ पर हाथ बढ़ाए
कहीं न पीछे से पछताए
बुझा मुझे फिर जला सकेगी नहीं दूसरी बार
डॉ. हरिवंशराय बच्चन
- उपनाम: बच्चन
- जन्म: 27 नवम्बर-1907
- निधन: 18 जनवरी-2003
- जन्म स्थान: इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भारत
- कुछ प्रमुख कृतियाँ: मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, निशा निमन्त्रण, दो चट्टानें।
- विविध: हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गणना। सिने स्टार अमिताभ बच्चन के पिता। "दो चट्टानें" के लिये 1968 का साहित्य अकादमी पुरस्कार।
ज्योति पर्व पर बच्चन जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा । आपको भी सपरिवार ज्योतिपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ सुबोध जी !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशीला जी..
हटाएंज्योति पर्व पर बच्चन जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा । आपको भी सपरिवार ज्योतिपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ सुबोध जी !
जवाब देंहटाएंगौरव शाली अतीत पुनःस्मरन कर प्रसन्न हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...पढ़वाने के लिए आभार
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