कलाकृति-अजामिल |
बाबूजी की चिट्ठियाँ
जैसे कोई किसी की
जिंदगी सँवारता है - धीरे-धीरे
मुजस्समे तराशता है संतरास
संगीत रचता है -
हवाओं के चलने से
आस्थाएं और विश्वास से पैदा होते हैं
वेद-पुराण
बाइबिल-कुरान
बीज बनता है वृक्ष जैसे
वैसे ही किसी अज्ञात पीड़ा से गुजरकर
चिट्ठियाँ लिखा करते थे बाबूजी -
एक कलाकार की तरह
शबनमीं हरूफों के
गोशे-गोशे में
बसी होती थी उनकी रूह
कहाँ जाना है
कहाँ मुड़ना है
कहाँ रुकना है - बताते थे ऐसे
जैसे कोई भटके हुए को
बताए रास्ता
‘प्रिय’ से शुरु होकर
‘तुम्हारे बाबूजी “ तक
आशीष बरसता था - मूसलाधार
उनकी चिट्ठियों में
भीग जाता था
रोम-रोम
उनके प्यार-दुलार से
चिट्ठियों में साँस लेते थे
बाबू जी
सिर चढ़कर बोलता है आज भी
उनकी लिखावट का जादू
कोई-कोई ही बुन पाता है जिंदगी को
इतने सलीके से
यकीनन दिल और दिमाग पर
छा-जाने वाली
कालजयी रचनाओं की तरह हैं -
बाबूजी की चिट्ठियाँ
सोचता हूँ - इन्हे सहेजकर भी तो
सहेजे जा सकते हैं -
बाबूजी
कोई बच्चा
इस डरावने सन्नाटे के खिलाफ
दुनिया के तिलिस्म में आने से पहले
कोई बच्चा धीरे-धीरे रो रहा है
माँ के गर्भ में
कोई और एक बच्चा गर्भ सागर में
चीख रहा है
जन्म लेने से इंकार कर रहा है
पृथ्वी पर
कोई बच्चा परख-नली में धड़क रहा है
आँखें खोलने के लिए
इच्छाओं की ताप से
मुक्त होने के लिए
नाली में बहा दिया गया है कोई बच्चा
अभी-अभी तेज पानी की धार के साथ
कमोड के रास्ते अवांक्षित मानकर
कोई बच्चा दर्ज करवा रहा है
अपना परिचय स्केनर के चमकदार पर्दे पर
अपने-अपने मतलब के बच्चे
तलाशे जा रहे हैं - करोड़ों-करोड़ गर्भ में पल रहे
बेमतलब के बच्चों के बीच से
कसाईबाड़े में जब
सुविधाएं जन्मेंगी - नया जीवन
बच्चे गर्भ में चीखेंगे चिल्लायेंगे
लंगड़ी-लूली
शताब्दी इस तरह दाखिल होगी
आगामी वर्तमान में
कोख में कुछ नहीं होगा तब
परदे पर
बच्चे की तस्वीर भी नहीं ।
औरतें जहाँ भी हैं
दरवाजे खोलो
और दूर तक देखो खुली हवा में
मर्दों की इस तानाशाह दुनिया में
औरतें जहाँ भी हैं - जैसी भी हैं
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद हैं - वे हमारे बीच
अंधेरे में रोशनी की तरह
औरतं हँसती हैं - खिखिलाती हैं औरतें
खुशियाँ बरसती हैं सब तरफ
छोटे-छोटे उत्सव बन जाती हैं औरतें
औरतें रोती हैं - सिसक-सिसककर जब कभी
अज्ञात दारूण दुःख में भीग ताजी है यह धरती
औरतें हमारा सुख हैं
औरतें हमारा दुःख हैं
हमारे सुख-दुःख की गहरी अनुभूति हैं ये औरतें
जड़ से फल तक - डाल से छाल तक
वृक्षों-सी परमार्थ में लगी हैं - ये औरतें
युगों से कूटी-पीसी-छीली-सुखायी और सहेजी जा रही हैं औरतें
असाध्य रोगों की दवाओं की तरह
सौ-सौ खटरागों में खटती हुई
रसोईघरों की हदों में
औरतें गमगमाती हैं - मीट-मसालों की तरह
सिलबट्टों पर खुशी-खुशी पोदीना-प्याज की तरह
पिस जाती हैं औरतें
चूल्हे पर रोटी होती हैं औरतें
यह क्या कम बड़ी बात है
लाखों करोड़ों की भूख-प्यास हैं औरतें
पृथ्वी-सी बिछी हैं औरतें
आकाश-सी तनी हैं औरतें
जरूरी चिट्ठियों की तरह
रोज पढ़ी जाती हैं औरतें
तार में पिरो कर टांग दी जाती हैं औरतें
वक्त-जरूरत इस तरह
बहुत काम आती हैं औरतें
शोर होता है जब
औरतें चुपचाप सहती हैं ताप को
औरतें चिल्लाती हैं जब कभी
बहुत कुछ कहतीं हैं आपको
औरतों के समझने के लिए तानाशाहों
पहले दरवाजे खोलो
और दूर तक देखो खुली हवा में ।
उस दिन
उस दिन उसने पाँच हाथ की साड़ी पहनी
उस दिन उसने खुदको लपेटा - सब तरफ से
उस दिन उसने दिन में कई-कई बार
आईना देखा
उस दिन उसने कंधे पर खोल दिये लम्बे बाल
उस दिन खुद को छुपाते हुए सबसे
इठलाई, इतरायी और शर्मायी
उस दिन पूरे समय गुनगुनाती रही - इधर उधर
उस दिन उसने स्टीरियो पर
दर्द भरा गीत सुना
उस दिन उसने
अलबम में तस्वीरें देखी - आँख भर,
उस दिन सुबक सुबक रोयी - जाने क्या सोचकर
उस दिन उसे चाँद खूबसूरत लगा
उस दिन चिड़ियों की तरह आकाश में -
उड़ने को चाहा उसका मन
उस दिन उसने बालकनी में खडे़ होकर
जी भर देखा दूर-दूर तक
उस दिन उसने सपने सहेजे
उस दिन उसने अंतहीन प्रतीक्षा की -
किसी के आने की
उस दिन उसने जीवन में पहला प्रेमपत्र लिखा
उस दिन उसने रूमाल पर बेलबूटे बनाए
और मगन हो गयी ....
उस दिन
हाँ, उस दिन हमारे देखते-देखते -
बिटिया बड़ी हो गयी ।
बुरा वक़्त
बुरे वक्त में
अक्सर बुरे नहीं होते हम
कुछ तिरछी- बाँकी चाल से
छुपते-छुपाते भी
बयान हो जाती हैं - अच्छी आदतें
बुरे वक्त में
कुछ ज्यादा ही गुनगुनाते हैं हम
सीटियाँ बजाते हैं - बेवजह
भले ही तनतनाती घूमती हो उसकी गूँज
शब्दान्तरित होती - संवेदनाओं में
बुरे वक्त में
हम पैदल ही निकल जाते हैं - टहलने
अतीत में
अजनबियों से भी हाथ मिलाने पर
सुकून-ज़दा गर्मी महसूस होती है - हथेलियों में
हाथ छोड़ने का जी नहीं करता - बुरे वक्त में
अच्छे वक्त में भी
बहुत याद आता है - बुरा वक्त
पुरानी - सबसे पुरानी तस्वीरों और चिट्ठियों में
खुद को तलाशता है - बुरा वक्त
बीमार बुजुर्गों की तरह
रात-रात भर खाँसता-खंखारता है - बुरा वक्त
नेपाली चौकीदारों की तरह बेहद वफादार है - बुरा वक्त
हर ईमानदार कोशिश में
सबसे अच्छा होता है - बुरा वक्त
बुरे वक्त में सीढ़ियाँ खुद-ब-खुद जाती हैं -
अच्छे वक्त की तरफ
बुरे वक्त में
कभी नहीं बहती खून की नदियाँ
म्यानों में आराम फरमाते हैं - तलवार और खंजर
सोने मढ़े दांतों की सफाई होती है - बुरे वक्त में
दोनालियों में पनाह पाते हैं कॉक्रोच
तितलियाँ बेखौफ घूमती हैं घाटियों में
गर्भाधान सकुशल होता है
चिड़ियां झूठे बर्तनों पर मंडराती हैं
नमक-निवाले के लिए
लोग अपने घरों से निकलते हैं -
खटखटाते हैं पड़ोसी के दरवाजों की कुण्डियाँ
वक्त - बेवक्त का कोई बुरा नहीं मानता - बुरे वक्त में
बुरे वक्त में
कच्चे प्याज की बास बन जाता है प्यार
प्रेमिका के आलिंगन में बादलों-सा
बरस कर निकल जाता है - बुरा वक्त
आँखें पढ़ी जाती हैं - बुरे वक्त में
ताबीजों में दुआ होता है - बुरा वक्त
गिरजाघरों की चाँदी होती है - बुरे वक्त में
बुरे वक्त में देवता भी स्वर्ग में होते हैं -
आदमी को ठेंगा दिखाकर
बुरे वक्त में
औजार बदलते हैं - हमारी शिनाख्त के
बुरा वक्त जी भर तोड़ता है हमें
बुरा वक्त जी भर जोड़ता है हमें
बुरे वक्त में हम पहचाने जाते हैं -
अच्छे वक्त के लिए
खूब गहरी नींद की तरह है - बुरा वक्त
बुरा वक्त इतना भी बुरा नहीं होता कभी
कि हाशिए पर उसे
फेंक दिया जाए -
अच्छे वक्त के लिए अक्सर
तब अच्छे वक्त में ही छुपा होता है - बुरा वक्त
बुरा वक्त भी बुरा नहीं
बुरे की मुखालफत के लिए
जिंदगी की इस जद्दोजहद में
यकीनन
बडे काम का है - ये बुरा वक्त
अजामिल
- मूल नाम : आर्य रत्न व्यास
- पिता का नाम : स्व०डॉ० बसंत नारायण व्यास
- प्रकाशन : देश की लगभग सभी चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियां, लेख आदि प्रकाशित |
- काव्य संकलन : त्रयी एक (संपादक डॉ० जगदीश गुप्त), शिविर (संपादक विनोद शाही), काला इतिहास (संपादक बलदेव वंशी), सातवें दशक की सर्व श्रेष्ठ कविताएँ (संपादक डॉ० हरिवंशराय बच्चन), जो कुछ हाशिए पर लिखा है (संपादक अनिल श्रीवास्तव, संपादक कथ्य रूप)
- काव्य संग्रह : औरते जहाँ भी हैं (शीग्र प्रकाश्य)
- संपर्क: 712/6, हर्षवर्धन नगर,मीरापुर, इलाहाबाद
- मो.09889722209
- ईमेल: ajamil777@gmail.com
हार्दिक आभार मयंक जी..
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