बुधवार, 21 जून 2017

कुंवर नारायण की कविताएं


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

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नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर श्री कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक (1959) के प्रमुख कवियों में रहे हैं। उनका जन्म 19 सितंबर 1927 को हुआ। कुँवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिये वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज संप्रेषणीयता आई वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। ‘तनाव‘ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया है। 2009 में उन्हें वर्ष 2005 के लिए देश के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ रचनाएं....
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घबरा कर


वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था 
लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।
ज़्यादातर कुत्ते 
पागल नहीं होते 
न ज़्यादातर जानवर 
हमलावर 
ज़्यादातर आदमी 
डाकू नहीं होते 
न ज़्यादातर जेबों में चाकू
ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में 
लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।
मैंने जिसे पागल समझ कर 
दुतकार दिया था 
वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था 
जिसने उसे प्यार दिया था।


ऐतिहासिक फ़ासले


अच्छी तरह याद है
तब तेरह दिन लगे थे ट्रेन से
साइबेरिया के मैदानों को पार करके
मास्को से बाइजिंग तक पहुँचने में।
अब केवल सात दिन लगते हैं
उसी फ़ासले को तय करने में −
हवाई जहाज से सात घंटे भी नहीं लगते।
पुराने ज़मानों में बरसों लगते थे
उसी दूरी को तय करने में।
दूरियों का भूगोल नहीं
उनका समय बदलता है।
कितना ऐतिहासिक लगता है आज
तुमसे उस दिन मिलना।


आँकड़ों की बीमारी


एक बार मुझे आँकड़ों की उल्टियाँ होने लगीं
गिनते गिनते जब संख्या 
करोड़ों को पार करने लगी 
मैं बेहोश हो गया
होश आया तो मैं अस्पताल में था 
खून चढ़ाया जा रहा था 
आँक्सीजन दी जा रही थी 
कि मैं चिल्लाया 
डाक्टर मुझे बुरी तरह हँसी आ रही 
यह हँसानेवाली गैस है शायद 
प्राण बचानेवाली नहीं 
तुम मुझे हँसने पर मजबूर नहीं कर सकते 
इस देश में हर एक को अफ़सोस के साथ जीने का 
पैदाइशी हक़ है वरना 
कोई माने नहीं रखते हमारी आज़ादी और प्रजातंत्र
बोलिए नहीं - नर्स ने कहा - बेहद कमज़ोर हैं आप 
बड़ी मुश्किल से क़ाबू में आया है रक्तचाप
डाक्टर ने समझाया - आँकड़ों का वाइरस 
बुरी तरह फैल रहा आजकल 
सीधे दिमाग़ पर असर करता 
भाग्यवान हैं आप कि बच गए 
कुछ भी हो सकता था आपको –
सन्निपात कि आप बोलते ही चले जाते 
या पक्षाघात कि हमेशा कि लिए बन्द हो जाता 
आपका बोलना 
मस्तिष्क की कोई भी नस फट सकती थी 
इतनी बड़ी संख्या के दबाव से 
हम सब एक नाज़ुक दौर से गुज़र रहे 
तादाद के मामले में उत्तेजना घातक हो सकती है 
आँकड़ों पर कई दवा काम नहीं करती 
शान्ति से काम लें 
अगर बच गए आप तो करोड़ों में एक होंगे .....
अचानक मुझे लगा 
ख़तरों से सावधान कराते की संकेत-चिह्न में 
बदल गई थी डाक्टर की सूरत 
और मैं आँकड़ों का काटा 
चीख़ता चला जा रहा था 
कि हम आँकड़े नहीं आदमी हैं।

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