चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
मुकम्मल घर
बहुत सी उम्मीदों का असबाब बांधकर ,
अम्मा मैंने एक घर बनाया है ...
रहूंगी मैं वहां तुम्हारे साथ ,
रहेगी मेरी बिटिया वहीं मेरे साथ
घर के बाहर लगी होगी तख्ती तुम्हारी नातिन की
अम्मा मैंने एक घर सजाया है...
सजेगी फर्श तुम्हारी निश्छल मुस्कराहट से
रंगेगी हर दीवार हमारे कहकहों से
लगाउंगी घर के कोनों में बड़ा सा आइना
जहाँ दिखेंगे हमें हमारे पुरुष
अम्मा मैंने एक घर बसाया है ....
आसमान की अलगनी पर सुखाउंगी तुम्हारी धोती
अपनी सलवार कमीज़ और बिटिया की शर्ट पैंट
आँगन में बिराजेंगे तुम्हारे शालिग्राम भगवान्
रंसोयी में महकेगा सालन तुम्हारे हाँथ का
छत पर सुखायेंगे हम अपने अपने आंसू
बस तुम लौट आवो अम्मा ,...
हम भी बना सकती हैं
सजा सकती हैं
बसा सकती हैं
एक मुकम्मल घर
बुरा हुआ,...जो,...सो हुआ
अब इस से बुरा और क्या होगा ?
कि नन्हीं चिर्रैया अपने ही रंग रूप से
है इन दिनों परेशान
अपने हर हाव भाव पर ,
फुदक चहक पर हो रही है सावधान
उसने ,खुदने अपने दाने चुगने ,
आँगन आँगन ,फुर्र फुर्र
उड़ने पर लगा ली है पाबंदी
समेट ली है अपनी हर मोहक अदा.....
बेपरवाह पंखों को समेट
उड़ जाना चाहती है नन्हीं चिर्रैया....
तिनके तिनके जोड़ कर
नहीं बसना चाहती कोई घोंसला
आंधी तूफ़ान ,तेज़ बारिश से भी
ज्यादा डरने लगी है
उन बहेलियों से जो पुचकार कर दाना खिलते हैं
रंग बिरंगी बर्ड हाउस तंग देते हैं रेलिंगों पर
वहां कोई आशियाना नहीं बसना चाहती
नन्हीं चिर्रैया
फुसलाने ,बहलाने के सम्मोहन से
आज़ाद होना चाहती है नन्हीं चिर्रैया
डरने लगी है बेहिसाब अपने ही रंग रूप
घाव भाव फुदक चहक...
हर अदा पर अब नन्हीं चिर्रैया ...
आखिर कब
एक ही सपना देखती हूँ आजकल
मैं एक नन्हे बच्चे में तब्दील हो चुकी हूँ
हाँथ में कूची और रंग लिए
हंस हंस कर मैंने नीले नीले
पहाड़ रंग डाले
आकाश पर समुद्र और धरती पर
सूरज उतार लायी
सारे पंछी ज़मीन पर रेंगने लगे
हांथी घोड़े ऊंट उड़ने लगे
चंदा मामा नदी में नहा रहे थे
सूरज चाचू कपडे धोने लगे
आकाश में हरी हरी दूब उग आई
वहां रेत थी, ईंटें भी, झोपड़ियाँ भी
बहुत उड़ने वालों को अपनी औकात समझ में आरही थी
सारे बच्चों की गेंदें आकाश में उछाल रही थीं
चलो मैदान ना सही आकाश तो था खेलने की खातिर
पर नींद यहीं आकर खुल जाती है ....
आखिर कब सपना पूरा होगा?
.
क्या आप जानते हैं..?
पिंजरा भर देता है मन में अनंत आकाश ,
हर बंधन से मु क्ति की छट पटा हट
जड़ता और रिवायतों से विरोध भाव ,
समस्त सुकुमार कोमल समझौतों के प्रति घृणा
यह तो पिंजरे में बंद चिरिया से पूछो ,
क्यूंकि वही जानती है आज़ादी के सही मायने
वो तरस खाती है उस आज़ाद चिरिया पर
जो कोमल घास पर फुदक फुदक कर
छोटे छोटे कीड़े मकौडों को आहार बनाती है
आज़ादी के सच्चे अर्थ नही जानती
और लम्बी तान गाती है ,
अपने में मशगूल
अपना आस पास भुला देती है
उसके गीत में राग अधिक है वेदना कम
वह अपनी मोहक आवाज़ से
मूल मंत्र भी बिसरा देती है
यहाँ पिंजरे में बंद चिरिया की तान
दूर दूर चट्टानी पहाड़ों को भी
दरका सकती है
उसके गीत में दर्द से बढ़कर कुछ है
जिसे समझ सकती है
केवल पिंजरे की चिरिया...
अम्मा
मेरी हर वो जिद नाकाम ही रही
जो तुम्हारे बिना सोने जागने उगने डूबने
बुनने बनाने बड़े होने या....
सब कुछ हो जाने की थी
अब जैसे के तुम नहीं हो कहीं नहीं हो
कुछ नहीं हो पाता तुम्हारे बगैर
नींदों में सपनो का आना जाना
जागते हुए नयी आफत को न्योता देना
चुनौतियों को ललकारना
अब मुनासिब नहीं .
सहेज कर रखा है..
मैंने आज भी सहेज कर रखा है
वह सबकुछ जो अम्मा ने थमाई थी
घर छोड़ कर आते हुए
तुम्हारे लिए अगाध विश्वास
सच्ची चाहत ,धुले पूछे विचार
संवेदनशील गीत ,कोयल की कुहुक
बुलबुलों की उड़ान ,ताज़े फूलों की महक
तितली के रंग ,इतर की शीशी
कुछ कढाई वाले रुमाल
सोचती हूँ हवाई उड़ान भरते भरते
जब तुम थक जाओगे
मैं इसी खुरदुरी ज़मीन पर तुम्हे फिर मिल जाउंगी
जहाँ हम घंटों पसरे रहते थे मन गीला किये हुए
वे सब धरोहर दे दूँगी ख़ुशी से वे तुम्हारे ही थे
अक्षत तुम्हारे ही रहेंगे ....
डॉ सुधा उपाध्याय
बी-3, स्टाफ क्वार्टर्स,
जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज (दि.वि.वि),
सर गंगाराम अस्पताल मार्ग,
ओल्ड राजेंद्र नगर,
नई दिल्ली-110060
फोन-09971816506
डॉ सुधा उपाध्याय
कई विधाओं में स्वतंत्र लेखन करती रही हैं। समसामयिक अनेक प्रतिष्ठित
पत्र-पत्रिकाओं में कई आलेख, कहानी, कविताएं प्रकाशित और पुरस्कृत।
विश्वविद्यालय स्तर पर कई पुरस्कार भी अर्जित किए हैं। अध्ययन-अध्यापन के
अलावा अनेक गोष्ठियों, परिचर्चाओं और वाद-विवाद में सक्रिय भागीदारी रही
सुल्तानपुर (उ.प्र.) में जन्मी डॉ सुधा उपाध्याय गद्य और पद्य दोनों है। ‘
बोलती चुप्पी’ (राधाकृष्ण प्रकाशन) कविताओं का संकलन बेहद चर्चित
रहा है। समकालीन हिंदी साहित्य, साक्षात्कार, कथाक्रम, आलोचना,
इंद्रप्रस्थ भारती, सामयिक मीमांसा आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं
प्रकाशित। दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज में हिंदी
विभाग की वरिष्ठ व्याख्याता के रुप में कार्यरत हैं। हाल ही में प्रकाशित
पुस्तक ‘हिंदी की चर्चित कवियित्रियां’ नामक कविता संकलन में कविताएं
प्रकाशित हुई हैं।
बेहद भावपूर्ण कवितायें. सुधा जी को सुनने का सौभाग्य मिला है उनमें कविता सुनाने की कला भी बेमिसाल है.
जवाब देंहटाएंआप सबकी संवेदनशील प्रतिक्रिया लिखने को विवश करती है। आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंHriday ki gahraiyon se likhi Sudha ki kavitayen ek antardwandv si macha deti hai , unchhuye unkahi bhawnaon se bhari .......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शेफालिका जी सचमुच आपकी टिप्पणी मेरे लिए महत्वपूर्ण है। आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंLooking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
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