चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार |
जग का रंग अनूप
वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।
जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।
जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।
दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।
जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार।
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण।
कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।
इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।
गोपालदास "नीरज"
- उपनाम-नीरज
- जन्म: 8 फरवरी 1926 को पुरावली, इटावा (उत्तर प्रदेश) में।
- शिक्षा: एम. ए. तक सभी परीक्षाओं में ससम्मान उत्तीर्ण।
- कालेज में अध्यापन, मंच पर कविता वाचन में लोकप्रियता और फ़िल्मों में गीत लेखन।
- कुछ प्रमुख कृतियाँ -दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के कारवां गुजर गया
- पत्र संकलन : लिख लिख भेजूँ पाती
- आलोचना : पंत कला काव्य और दर्शन।
- विविध-2007 में पद्म भूषण सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित
जय मां हाटेशवरी...
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दिनांक 19/07/2016 को
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